पानी टंकी और मेरा शहर,
मालूम नहीं कब इस इमारत को बनाया गया, या फिर किसने बनवाया, ज़रूर ही किसी सरकारी योजना के तहत बनाया गया होगा, मैने कभी जानने की कोशिश भी नहीं की, शहर में कई जगहों पर नल भी लगे देखे थे जो की पिछले 10 सालों में गायब हो चुके हैं (पुराने वाले) काम से कम जो मैने स्पॉट किए थे।
जानने की कोशिश इसीलिए भी नहीं की क्योंकि कभी इसके होने के असल कारण को रूपवत होते नहीं देखा, जब से याद है, इसे बस एक लैंडमार्क के तौर पर हीं इस्तेमाल होते पाया है। बड़े लोग कहते हैं, की कभी इसमें पंप से पानी भरा जाता था और उस वक्त जितना ही बड़ा शहर था सहरसा उस
मे सप्लाई भी किया जाता था।
जियादती तौर पर मुझे ये इमारत काफ़ी पसंद हैं।
क्योंकि, इस इमारत ने इन कई वर्षों मे अपना एक अलग व्यक्तित्व बनाया है।अपने पैदाइशी पहचान को छोड़ कर खुद अपने नई पहचान गढ़ना और उसमे सफल हो पाना एक बड़ी कमियाबी है।
जब भी इस 40 - 50 फीट की इमारत के पास से गुजरता हूं, अनायास ही उधर ध्यान चला जाता है, जैसे कुछ आकर्षण बल है इसमें , तबतक देखता रहता हु जबतक पेड़ों और दूसरी इमारतों के पीछे ओझल नहीं हो जाती। इस इमारत पर को रंग नहीं है, बस वोही सीमेंट सा ग्रे टोन और उसपर वर्षों हुई बारिश की गवाही देती कालिख। बरसात के दिनों में जब बारिश के बाद आसमान साफ नीला होता है, गुलमोहर के हरे पत्तों और गेरुआ फूलों के बीच इस ग्रे इमारत की अलग ही चमक होती है, सर्दी की धुंध में किसी अटल सिपाही के जैसे तैनात रहता है, और गर्मियों में मैं ज़्यादा बाहर नही निकलता तो, उन दिनों का विवरण नहीं दे सकता।
हर मानव निर्मित चीज़ की एक उम्र होती है, पानी टंकी की आगे की कहानी को देखना और समझना, और अगली पीढ़ी को इसका क्या स्वरूप देखेगा जानना काफ़ी रोचक होगा।
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