उलझन का ये आलम है,
के कोई सुलझा सकता नही
मशवरे देता हूं, मशवरे पाता हूं,
मशवरों का इलाज कोई जानता नही।
कुछ खास लोगों से मशवरा किया,
और अपने अहम को जला भी दिया।
फिर अक्ल आई,
के मशवरे तो अहम की पैदाइश होते हैं।
अहम की कलम तो जुबां होती है,
मशवरे इसी स्याही से लिखे जाते हैं।
और उलझन सुलझाने गए थे, खुद ही उलझ गए,
बाकी, मशवरो का इलाज कोई जानता नही।
Comments