.akashaman601Feb 23, 20231 min readनज़्मे कम पड़ जाती हैं, गज़लें कम पड़ जाती हैं। जब भी तुझको सोचता हूँ, मेमोरी कम पड़ जाती हैं। पता नहीं है, कहाँ छिपी है, फिर भी ख़ोजना चाहता हूं। यादों की दावत देकर मैं। तुझे बुलाना चाहता हूँ।
माँमाँ का दिल जब रोता है, धरती भी साथ में रोती है। माँ जब गुस्से में होती है, तो हल्का सा रो देती है। उस घर में खुशहाली है, जीस घर में माँ...
मशवरा।उलझन का ये आलम है, के कोई सुलझा सकता नही मशवरे देता हूं, मशवरे पाता हूं, मशवरों का इलाज कोई जानता नही। कुछ खास लोगों से मशवरा किया, और...
ढ़लाननहीं हुआ हूँ ख़त्म अभी, ये तो बस एक ढ़लान है। था अकेला चट्टान सा, अब जूझ रहा हूँ ,शाखों से मैं। कुछ टूट जाऊँगा अभी, होगा, कुछ बोझ हल्का फिर...
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