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दरख़्त

इन दरख्तों के साए,

हैं मैने कई मौसम बिताए।

एक बूंद ओस से भींगा हूं,

एक सांस में पतझड़ समा लिया।

खुला आसमां साथी था,

धूप घटाएं संग लिए।

- व्योम।

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