बहुत वक्त से भाग रहा हूं कई रातें अब जाग चुका हूं रुकने की आदत अब छूट चुकी है थमने की चाहत भी छूट चुकी है वक्त भी गुज़र रहा है सामा भी बदला रहा है बहुत कुछ पीछे छोड़ चला हूं छूट गई हैं गलियां घर की, छूट गया है पेड़ आम का, छूट चुकी है शाम शहर की, छूट चुका है आंगन घर का,
जाने से पहले मुझे बुलाना, देखो ये बात भूल न जाना, पलक झपकते मैं आऊंगा, आंगन तेरे लौट आऊंगा।
बहुत वक्त से भाग रहा हूं कई रातें अब जाग चुका हूं। - व्योम।
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